काश !!
- merikalamse
- Sep 4, 2017
- 1 min read
Updated: Sep 9, 2017

देखता हूँ अक्सर खिड़की से, कुछ कोयल दाना चुगती हैं
फुदक फुदक कर चुगते चुगते फिर वो सब उड़जाती हैं काश मैं भी उड़पाता, रंग आसमान के देखपाता आज़ादी क्या है काश मैं भी जान पाता
पर हम सब तो उलझें हैं जीवन के जाल में कैद हो चुकें हैं जिम्मेदारियों के जंजाल में दिखती नही पर बेड़ियाँ तमाम हैं हर हाल में काश मैं भी उड़ पाता, ये सारी बेड़ियाँ तोड़ पाता आज़ादी क्या है काश मैं भी जान पाता
फिर आज एक कोयल मुझसे बोली क्या समझते हो तुम खुदको तुम तो खुद कैद हो, क्या कैद करोगे तुम मुझको? पंख तो कट चुकें हैं तुम्हारे, पैर भी अब छिलने को हैं किसके पीछे भाग रहे हो न जाने ऐसा क्या मिलने को है! आ तोड़ इस जाल को, आ चल संग मेरे आकाश को फिर पंख तुझको लग जाएंगे, आबाद तू हो जाएगा जीवन के इस जंजाल से आज़ाद तू हो जाएगा
पलक झपकी, सपना टूटा, बैठा था एक कमरे में खिड़की खुली थी अब भी, कोयल बैठी थी अब भी शोर मचा, वो उड़ गयी, और मैं.... काश !!!!! काश मैं भी उड़ जाता काश मैं भी आज़ाद हो जाता !!!!

Comments